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धर्म समय के दायरे में बंधा हुआ है, धर्म कुछ भी नहीं केवल मनुष्य के मन की संका है /

हिन्दुस्तान
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मेरा धर्म महान , मेरा धर्म अच्छा , मेरा धर्म मानवता वादी , मेरा धर्म श्रेष्ठ , यही सब सुनने व पढ़ने को मिल रहा है / महान ,श्रेष्ठ , अच्छा वही धर्म है जो सभी सभी धर्मो को एक समझे , सभी का मूल तत्व एक है ही वाद है मानवतावाद ! क्या केवल मनुष्य ही इस संसार को चला रहा है मै तो बिलकुल ही नहीं मानता , कुछ ऐसे धर्म पैदा हो गए और उनके अलम्बरदार जो अपने सिवा किसी की सुनते ही नहीं , अपनी गलती को भी धर्म के नाम पर सही ठहरा देते हैं / इस संसार में जीने का सभी को हक है वृक्ष से लेकर चीटी तक सभी इस संसार को चला रहे हैं जो प्राकृतिक जीवन चक्र है किसी एक के विलुप्त होने पर जीवन चक्र रुकने लगता है / मान लो सभी वृक्ष काट जाएँ तो क्या होगा ? जंगल में सभी हिंसक पशु मर जाएँ तो क्या होगा ? यह सब आज के कथित धर्मों का इससे कुछ भी लेना देना नहीं है. मनुष्य यदि धर्मो से डरता है ,धर्म में बंधा हुआ है , यदि प्रकृति को धर्म से जोड़ दे तो प्रकृति से भी इंसान डरेगा और यह संसार विकृत व नष्ट होने से बच जायेगा / केवल एक ईश्वर के मान लेने से या मनवा लेने से या धर्म बदलवा लेने से कुछ नहीं बदलेगा, अपने आप को प्रकृति से जोड़ो ये वृक्ष हैं तो ही जीवित रहोगे वृक्ष काट दो तो ईश्वर अल्लाह कुछ नहीं देंगे भूंखो मर जाओगे / आज की विनाश लीला का यानि प्राकृत से खिलवाड़ का नतीजा देख ही रहे हो, खाने को अनाज नसीब नहीं होगा /
धर्म की समय सीमा समाप्त होने के निकट है ७००० वर्ष तक का पुराण -इतिहास ज्ञांत है और लिपिबद्ध भी है , परन्तु समय बदला और २५०० साल पहले कई सारे धर्मो का उदय हुआ उनकी अपनी अपनी परिभाषा गढ़ी और सभी ने मानव को श्रेष्ठ बताया किन्तु यह ध्यान रहे २५०० सौ साल के पहले के समय में कोई भी धार्मिक विवाद इतिहास में नहीं मिलता , क्यूं ?
अब समय आ गया जब सारे धर्मो का विलय हो जाये और एक धर्म जिसमे बने जिसमे सभी हिस्से अपने आप में भगवान हों , क्यूंकि ईश्वर की बिना काम चल सकता है लेकिन भोजन , पानी , हवा , मिटटी , वृक्ष , जीव -जंतु रुपी ईश्वर के नष्ट हो जाने से स्वतः ही ख़त्म हो जाओगे / जो दिखाई दे रहा है , प्रत्यक्ष है , जीवन रूप में है , सहयोगी है वही ईश्वर है ,स्वर है ,वर है ,वरदान है , भगवान है …

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