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RTI कानून तो बन गया पर इसका उपयोग व्यर्थ है

हिन्दुस्तान
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आर टी आई का पूरा अर्थ होता है सूचना का अधिकार पर , जनता को सूचना का अधिकार तो मिल गया पर इस अधिकार का करें क्या, क्या मिली हुई सूचना का अचार डालें , क्यूंकि कार्यवाही तो होती ही नहीं है । सूचना मांग लेने भर से क्या होता है सूचना गलत मिले या सही पर अधिकार के तहत सूचना तो मिल ही जाती है । यदि गलत सूचना मिलने पर त्वरित कार्यवाही भी की जाये तो कानून का सही अर्थों में उपयोग समझा जा सकता है। इसका मतलब यह नहीं है जब हमने किसी संसथान या प्रतिष्ठान से सूचना मांगी और हमें उत्तर के रूप में जो सूचना प्राप्त हुई वह मांगी गई सूचना के विपरीत निकली अब हम क्या करें फिर से मांग की फिर वही उत्तर , ऐसा हुआ है और हो रहा है। जब अधिकारी की नियुक्ति उसी संसथान से ही की जाती है तो जाहिर है उत्तर भी उस संश्थान की उच्च अधिकारी के मुताबिक ही दिया जायेगा । फिर सम्बंधित पत्रावली ही संसथान से गायब हो जाती है यदि उसी संसथान में कार्य करते हो तो सबूत पेश करने पर पूछने है यह तुम्हे कहाँ से मिला तुम पर कार्यवाही हो सकती है उल्टा प्रताड़ित किया जाता है । मेरा मानना है आर टी आई कानून को भी बनने वाले लोकपाल बिल जैसे प्रावधान सम्मिलित किये जाये इसके लिए भी एक स्वतन्त्र जांच कमेटी होनी चाहिए । अन्यथा इस बिल का मतलब ही कुछ नहीं है , जैसे हमने उत्तर माँगा उन्होंने दे दिया आप संतुष्ट हम असंतुष्ट और मेरे असंतुष्ट होने से उनका कुछ होने वाला नहीं है बल्कि लोगों की नौकरी पर खतरा मडराता रहता है एक दर का माहोल बना हुआ है , कुछ लोग डर की वजह से rti नहीं मांगते कही अपना ही अहित न हो जाये । अतः आज के इस युग में भ्रस्टाचार को मिटाने के लिए एक दो कानून नहीं बल्कि चारो तरफ से इतने कानूनों से घेर दिया जाये की उसकी सात पुसते भी या आगे बनने वाले सात अधिकारी भी भ्रष्टाचार करने की हिम्मत न कर सकें।

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